BHARATIY KISHAN UNIUN

(PURVANCHAL)

सन्त विलास सिंह जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष) भारतीय किसान यूनियन (पूर्वांचल)

मेरे किसान भाइयों भिन्न-भिन्न उद्देश्यों को लेकर बनी हमारे देश में भारतीय किसान यूनियन के अलग-अलग कमेटी भिन्न-भिन्न उद्देश्यों को लेकर सरकार से वार्ता कर रही है लेकिन अभी तक किसी ने ऐसा जोर नहीं लगाया जो किसान हित में वह किसान भाइयों को भारत के संविधान में कोई जगह मिल सके यह किसान सभी का पेट भरता है और पेट भरने के लिए सभी लोगों को अनाज की ही जरूरत है किसान अपने दुर्दशा को ध्यान ना देते हुए आज तक हर स्थिति में अनाज पैदा करने के लिए विवश है और इसकी व्यवस्था सरकार द्वारा सुनिश्चित की जाती है लेकिन हम इसको अपना कर्तव्य समझते हैं और अपने अधिकार के लिए खुद मोर्चा लेने के लिए भी तैयार हैं भारत की ६०परसेंट से भी अधिक आर्थिक व्यवस्था को संभालने वाली कृषि व्यवस्था हम किसानों ने ही संभाल रखी है लेकिन हमारे हाथों से जब हमारी जमीन ही छीन ली जाती है तो हम विवश हो रहे हैं कि क्या हम अपने किसान परंपरा को लगातार सुनिश्चित करते रहेंगे और इस परंपरा को सुनिश्चित करने में हमें कितने प्रकार का कष्ट झेलना पड़ेगा हम अपनी जमीनों से बेदखल हो रहे हैं और हमारे ऊपर बैंकों का सबसे बड़ा कर्ज लादा जा रहा है हमारे लिए महंगी बिजली महंगी पानी की व्यवस्था व महंगी कृषि यंत्रों की व्यवस्था की जा रही है जिससे हम लगातार कृषि में होने वाले व्यय की कोई सीमा सुनिश्चित नहीं है वह इतनी ज्यादा हो जा रही है कि हमारी उपज होने के बाद भी हम लगातार बढ़ते हुए कर्ज में दबे जा रहे हैं और आजादी के बाद से पता नहीं कितनों ने इस कर्ज के नीचे आत्महत्या करके यह संदेश दिया है कि वाकई में हमारी स्थिति बहुत ही दयनीय है इसलिए आज मैं संत विलास सिंह  अपनी टीम के साथ एक नए जोश के साथ भारतीय किसान यूनियन की एक नई शाखा पूर्वांचल के उत्तरदायित्व को खुद अपने कंधों पर लेकर किसानों की समस्याओं को जड़ से समाप्त करने का संकल्प लेता हूं हालांकि बहुत सारा समय मैंने किसान यूनियन में बहुत सारे किसान यूनियन के बैनर तले इन लड़ाईयो को लड़ा लेकिन जब कोई अध्यक्ष अथवा किसान के नेतृत्व करने वाले नेता ही भ्रष्ट तरीके से सरकार के साथ मिलकर किसानों को धोखा दे रहे हैं उस समय में स्वयं यह प्रतिज्ञा लेने के लिए मजबूर हो गया हूं कि इन सब समस्याओं को जड़ से समाप्त करने के लिए कुछ समय में ही मुझे आपका इतना साथ चाहिए कि मैं इन सब समस्याओं का निवारण कर सकूं जो अपने शब्दों में कर रहा हूं अपने देश के किसानों को उससे आजाद करा सकूं आजाद कराने से तात्पर्य है कि हम और हमारी भूमि दोनों अगर सुनिश्चित नहीं होंगे तो शायद यह परंपरा बहुत दिनों तक नहीं चल पाएगी लोगों ने कल्पना कर रखी है कि शायद वह टेबलेट खाकर जीना सीख जाएंगे लेकिन शायद यह प्राकृतिक रूप से सत्य वह सही नहीं है जीने के लिए लोगों को अनाज की आवश्यकता पड़ेगी और किसान की भी आवश्यकता पड़ेगी और हम अपने बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर अथवा कुछ ना बना करके एक अच्छा किसान बनाना चाहते हैं इस क्रम और परंपरा को जारी रखना चाहते हैं तो इस लड़ाई को हम सुनिश्चित करेंगे और अपने किसान जाति अथवा धर्म व कर्तव्य की सुरक्षा के  लिए अब करो या मरो के नारे के साथ एक ऐसी लड़ाई छेड़ देनी है जो किसान को उसका स्थान दिला सके और भविष्य में हम एक ऐसा स्थान प्राप्त कर सकें जो हम पाने के योग्य हैं कहने का तात्पर्य स्पष्ट रूप से यह है कि हम किसान हैं और हमारी परंपरा के अनुसार किसानी एक ऐसा कार्य है जो समाज में वह व्यक्ति करता है जो हर तरह से 24 घंटे कार्य करता है और जीवन के मूल्यों को जन्म देता है और जीवनदायिनी वनस्पतियों को सींचता है और पैदा करता है जिससे लोगों की भूख और प्यास मिट सके इसलिए और कामों को सेकंड स्तर पर रखा जाए फर्स्ट स्तर पर किसानी थी है और रहेगी इसलिए हमारे देश के युवा इस परंपरा को बढ़ाते रहें और इससे पलायन न करें इसलिए इसमें विकास की गति को और उनके उन्नति को सुनिश्चित करना आवश्यक है इसलिए मेरे किसान भाइयों भारतीय किसान यूनियन पूर्वांचल की कमान को मैं संत विलास सिंह अपने सहयोगियों के साथ कमर कस के किसानों को वह दिला देना चाहता हूं जिसके बाद किसानों को भारत ही नहीं पूरे विश्व में उस स्थान से कोई हटा नहीं पाएगा स्थान पर वह रह देश के विकास व देश का भरण पोषण के साथ अपने विकास को भी सुनिश्चित कर सकेगा।

जय जवान जय किसान जय संविधान

किसान एकता जिंदाबाद।                                                                                                                                सन्त विलास सिंह जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष) भारतीय किसान यूनियन (पूर्वांचल)

किसानों के हित में विचार करते हुए 

किसानों के जमीन से जुड़े अर्थव्यवस्था की तरफ प्रकाश डालते हुए यह बात समझ में आती है कि किसानों के जमीन में लगने वाली व्यय व्यवस्था उत्पादन के सापेक्ष में कितने पर्सेंट की लागत होती है 35% लगता व्यवस्था के बाद १०० परसेंट उत्पादन मिले आवश्यक नहीं है इसलिए ३५% लागत के बाद यह वृद्धि होकर 60 से 65 परसेंट पर ही रुक जाती है जिसकी वजह से किसान की सौ पर्सेंट की व्यवस्था में आर्थिक मदद के रूप में ६० परसेंट कंप्लीट हुआ तो 25 परसेंट की आवश्यकता पूरी हो सकती है और अगर 70 परसेंट हुआ तो 35 परसेंट की आवश्यकता पूर्ण हो सकती है अगर यह 65 परसेंट वृद्धि हो जाए तो शायद 35 परसेंट की कमी कभी पूरी नहीं हो पाती क्योंकि 100 परसेंट पूरा होने में शायद ही कोई वर्ष हो जिसमें वह कोई भी क्षति का सामना न करता हो? लेकिन व्यापार में कमी पूरा करने के लिए एक रुपए की लागत के बाद उसे ₹3 में अथवा अधिकतम ₹10 में भी सामान को बेचने का प्रयास किया जाता है यानी 10 गुना फायदा आवश्यकता है कि यही किसान कीअगर लागत 35 परसेंट आ रहा है तू इसे 10 गुना करके ₹350 मैं बेची जाए यानी अगर अनाज पैदा करने में 1 किलो अनाज की लागत ₹10 है तो यह 10 गुना ₹100 किलो अनाज की बिक्री होनी चाहिए उसी हिसाब से अनाज की कीमत भी ₹120 किलो  ₹12000 क्विंटल होना चाहिए। एक हेक्टेयर में ३० क्विंटल अथवा 40 क्विंटल होता है तो कीमत ३६०००० व ४८०००० होग जो किसान की सामान्य आय होगी। और किसान की उन्नति होगी।-- प्रवीन रिवाइवल

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